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कैसे आएँ राखी लेकर

 

कैसे आयें राखी लेकर
अब हम तेरे पास
बहन हम शर्मसार हैं

उठा हथेली झाँपे मुँह को
लुंठित शिष्टाचार
अक्षत-रोरी रेशम-धागा
सभी रहे दुत्कार

मानव-तन का दानव कोई
कैसे आये रास
बहन हम शर्मसार हैं!

सोच नहीं थी बंजर ऐसी
पर अब धूसर नेह
पता नहीं हम कब से आँखों
लगे रौंदने देह

ऐसे में किस मुँह से आयें
भाई हो कर पास
बहन हम शर्मसार हैं!

मेरा भइया राज-दुलारा
गाया करती गीत
भइया निकला ऐसा राजा
सखियाँ हैं भयभीत

जाने कौन घड़ी पड़ जाये
चन्दा पर खग्रास
बहन हम शर्मसार हैं!

- सौरभ पाण्डे
१५ अगस्त २०१६

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