रेशमी नेह
से जब कलाई सजी
स्वर्ण बन दो हृदय चमचमाने लगे
रोली-चन्दन हुई भावना मुग्ध हो
भाल पर गर्व से मुस्कुराती दिखे
आरती की सुवासित ये ज्योति अखंड
मार्ग सम्बन्ध के जगमगाती दिखे
मेवे-मिष्ठान्न के थाल प्यारे सभी
मीठे को और मीठा बनाने लगे
वचनों को भी पुनः प्राप्त यौवन हुआ
कर्मपथ पर अधिक वे अटल हो गये
जमता दिखने लगा था जहाँ हिम कभी
अंश उनके पिघल के सरल हो गये
शगुन जितना मिला, चाहे जो भी मिला
यों लगा देव दुनिया दिलाने लगे
- कुमार गौरव अजीतेन्दु
१५ अगस्त २०१६ |