एक दूजे को
बाँधे राखी
सद्भावों की डोरी से
ताप क्लेश के बादल गरजे
रह रह अपने अंबर में
रंजिश की चिंगारी सी अब
फूट रही है घर घर में
आओ अपना
देश बचाएँ
नफरत, सीनाजोरी से
जात धरम के शूल रहे ना
अब से अपनी बस्ती में
बस इन्सानी रिश्ते हों सब
झूमें गाए मस्ती में,
प्यार न आँका
जाए अपना
दौलत माल तिजोरी से
गोकुल की गलियों सी गम गम
अपनी गाँव नगरिया हो
उस नगरी से पनघट जाती
पावन एक डगरिया हो
रास रचाए कान्हा
उसपे चुपके राधा गोरी से
- शंभु शरण मंडल
१५ अगस्त २०१६ |