अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

राखी का त्योहार है आया

 

राखी का त्यौहार है आया, भैया बसे विदेश।
खुशियाँ डिजिटल भर-भर लाया, भैया बसे विदेश।

इंटरनेट पे राखी-लड्डू हमने भेजे थे
कुरियर से तोहफ़ा भिजवाया, भैया बसे विदेश।

वो बचपन की राखी कितनी अलग-सी होती थी
उसकी याद में मन भर आया, भैया बसे विदेश।

अगली बार मनायेंगे हम एक साथ राखी
मैंने खुद को फिर बहलाया, भैया बसे विदेश।

कच्चे धागों सँग जो बाँधा नेह अटूट अपना
दूर भी रहकर खूब निभाया, भैया बसे विदेश।

- संजू शब्दिता
१५ अगस्त २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter