थोड़े तुममे,
थोड़े मुझमे
यादों की तस्वीरों के रंग
कुछ पक्के हैं कुछ कच्चे हैं
नन्हें नन्हें से हाथों पर
नन्हें हाथों से बँधते थे
रेशम के उन धागों के पल
कितने ढंगों में ढलते थे
सेवैयों की आधी प्याली
तुम खाते, आधी मैं खाती
मस्ती यूँ आधी-आधी, पूरी
हो दोनों में बँट जाती
माँ हँसते हँसते कहतीं थीं
बच्चे तो मन के सच्चे हैं
धीरे-धीरे धीरे-धीरे
दस्तूरों के फैले कोहरे
कुछ आँख समय ने धुंधलाई
कान हुए कुछ अपने बहरे
अब बात यहीं तक सिमट गयी
जीवन की उधड़न सीवन में
गर हाल चैत में पूछो तो
हम हाल बताते सावन में
सुधियों में फूलों से फिर भी
किस्सों से सुन्दर गुच्छे हैं
सावन की रिमझिम में लेकिन
अब भी मैं चाँद संजोती हूँ
कुमकुम चन्दन की थाली ले
रेशम में उसे भिगोती हूँ
हर साँस दुआ यह करती है
तुम जहाँ रहो खुश हाल रहो
हर जीत तुम्हारी बाँदी हो
खुशियों से मालामाल रहो
तन अपने कितने बदल गए
मन
अब भी लेकिन बच्चे हैं
- सीमा अग्रवाल
१५ अगस्त २०१६ |