स्नेह
अँगीठी जब चढ़ी, बना सूत इस्पात
कौन तोड़ इसको सके, किसकी भला बिसात
मेघ मेह बरसा रहा, बहन स्नेह बरसात
यह तो बरसे चंद दिन, स्नेह-नीर दिन रात
प्यार शुद्ध समझो इसे, यह ना कच्चा सूत
बहन-प्रेम में डूब कर, बने सूत मजबूत
यत्न और आँसू, थकन, खोज सके ना भ्रात
खोया कहीं अतीत में, दे दुश्मन को मात
इस राखी देना वचन, मेरे भय्या वीर
रहना बस दर्शक नहीं, हरण कहीं हो चीर
गली गली हर शहर में, अनाचार घनघोर
राखी विस्मृत हो रही, प्रेम दिवस पर जोर
- ओम प्रकाश नौटियाल
१५ अगस्त २०१६ |