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राखी की डोरी

 


राखी की डोरी मनभावन
मन भी हो जाता है सावन
होता बहुत अपूरब ये पल
मधुर-सुहावन औ' अति पावन


बहनें नयना - भाई नीर
देखो उनके हिय को चीर
स्नेह डोर से मधु-रस छलके
रिश्ता यह पावन गंभीर


भाई-बहन का प्रेम रूहाना
लगता राखी-पर्व सुहाना
भैया हो परदेस अगरचे
सावन भी लगता बेगाना


डोर स्नेह की मन का बंधन
बहन लगाये माथे चंदन
कहे बाँध कर डोरी बहना
भ्रात, सदा जीवन में रहना


राखी ना कोई व्यापार
भाई-बहन का यह शृंगार
जब-जब आता है यह पर्व
हृदय उमड़ता हर्ष अपार


राखी पावनतम बंधन है
हृदय प्रेम माथे चंदन है
आता मंगल पर्व, झूमता
भाई-बहन का पावन मन है

- डा. सरस्वती माथुर
१५ अगस्त २०१६

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