अनुभूति में
शरद तैलंग की रचनाएँ
नई गज़लें
आपकी बातों में
खुशी की
तरह
जब से मेघों
से मुहब्बत
दुकानों में सजा
सामान
रोशनी तो
रोशनी है
वो सबकी
प्रार्थनाओं पर
मुक्तक में
तीन
मुक्तक
छंदमुक्त में-
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई
सिलवटें
अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इतना ही अहसास
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
कभी जागीर
बदलेगी
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
ज़िंदगी की
साँझ
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थर सा जो दिल
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
बहुत से लोग
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मेरे बच्चे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी
गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ
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दुकानों में सजा सामान
अब दुकानों में सजा सामान सब बेकार है,
पहले जैसा अब न कोई तीज या त्यौहार है।
दीप थोड़ी देर ही जलकर के देखो बुझ गए,
अब न वैसा तेल है और अब न वैसी धार है।
घर की सारी खिड़कियाँ ही रास्ते की ओर जब,
फिर शिकायत क्या ? नगर का आदमी बदकार है।
सिर्फ नेताओं की बातें, कत्ल, चोरी, अपहरण,
बस यही मिलता जहाँ वो मुल्क का अखबार है।
तुम मुबारकबाद दिल से दो या मत दो गम नहीं,
खा के दावत, दो लिफ़ाफा ये बचा व्यवहार है।
भेद अश्कों ने भला गम और खुशी में कब किया,
दोनों सूरत में छलककर कर दिया इजहार है।
क्यों जनम लेता नहीं किस सोच में बैठा है वो?
आज भी धरती पे तो हर सिम्त अत्याचार है।
मैँ तो यारों की बदौलत रह न पाया चैन से,
मुझको आता ही नहीं करना कभी इनकार है।
सिर्फ गजलोँ में रदीफ-ओ-काफिया काफी नहीं
उसमें कुछ तो आदमी का दर्द भी दरकार है।
इसलिये शेरों पे तेरे दाद मिलती है ‘शरद’
तेरी गजलोँ में समाया ज़िन्दगी का सार है।
२४ फरवरी २०१४
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