अनुभूति में
शरद तैलंग की रचनाएँ
नई गज़लें
इतना ही अहसास
कभी जागीर
बदलेगी
ज़िंदगी की
साँझ
मुक्तक में
तीन
मुक्तक
कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई
सिलवटें
अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी
गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ
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आप तो बस
आप तो बस अपना ही ग़म देखते हैं
किसलिए फिर मुझ में हमदम देखते हैं।
याद जब आने लगीं बचपन की बातें
तब पुराने एलबम हम देखते हैं।
हमने खंजर को भी दिल से है लगाया
किस तरह निकलेगा ये दम देखते हैं।
जो तकाज़े के लिए आए हैं घर में
घर के अन्दर क्या वो हरदम देखते हैं?
आप से हम को है बस इतनी शिकायत
आप अब मेरी तरफ़ कम देखते हैं।
मौत पर उनकी 'शरद' कोई न रोया
बस झुका सा अब ये परचम देखते हैं।
1 जनवरी 2005
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