अनुभूति में
शरद तैलंग की रचनाएँ
नई गज़लें
इतना ही अहसास
कभी जागीर
बदलेगी
ज़िंदगी की
साँझ
मुक्तक में
तीन
मुक्तक
कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई
सिलवटें
अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी
गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ
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समंदर की निशानी
समेटे सब को अपने में समंदर की निशानी है।
हमें ये ख़ासियत उसकी सभी के दिल में लानी है।
ये मत सोचो जो आला दिख रहे हैं वो सभी खुश हैं,
तुम्हारी ये कहानी है तो उनकी वो कहानी है।
न आंखों में हया जिनके न बातों में है सच्चाई,
हमें ऐसे ही कुछ लोगों से ये संसद बचानी है।
कभी शासन में आसन तो कभी राशन या भाषण में,
उलझकर रह गया इनमें हर इक हिन्दोस्तानी है।
किसी पुस्तक से या फिर चित्र से भयभीत ना हो तुम,
हमारी आस्था कच्ची नहीं सदियों पुरानी है।
पड़ोसी मुल्क़ से तुम दोस्ती की बात करते हो,
पड़ोसी घर से भी तो दुश्मनी हमको मिटानी है।
मयस्सर भी नहीं सिर को छिपाने की जगह जिनको,
हमें उनके लिए तो सबसे पहले छत बनानी है।
हमें ना ताज की चाहत 'शरद' ना राज की हसरत,
हमारी चाह तो सबके लिए रोटी औ' पानी है।
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