अनुभूति में
शरद तैलंग की रचनाएँ
नई गज़लें
इतना ही अहसास
कभी जागीर
बदलेगी
ज़िंदगी की
साँझ
मुक्तक में
तीन
मुक्तक
कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई
सिलवटें
अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी
गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ
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पत्थरों का अहसान पत्थरों का ये बड़ा एहसान है
हर कदम पर अब यहां भगवान है।
देर से नन्हा सा दीपक जल रहा है
ये हवाओं का भी तो अपमान है।
सज रहीं हैं फिर खिलौनों की दुकानें
मुश्किलों में बाप की अब जान है।
आरज़ू सीने में अब हर पल दफ़न है
बन गया दिल जैसे कब्रिस्तान है।
शब्द बेचारा रहा बस देखता ही
अर्थ को मिलता रहा सम्मान है।
जब कोई प्यारा सा बच्चा खिलखिलाए
यों लगे सरगम भरी इक तान है।
ख्वाब पूरे हों सभी अब आप सब के
बस 'शरद' के दिल में यह अरमान है।
9 जुलाई 2006 |