कभी जागीर बदलेगी
कभी जागीर बदलेगी, कभी सरकार बदलेगी,
मगर तकदीर तो अपनी बता कब यार बदलेगी?
अगर सागर की यूँ ही प्यास जो बढती गई दिन दिन,
तो इक दिन देखना नदिया भी अपनी धार बदलेगी।
हज़ारों साल में जब दीदावर होता है इक पैदा,
तो नर्गिस अपने रोने की तू कब रफ्तार बदलेगी।
सदा कल के मुकाबिल आज को हम कोसते आए,
मगर इस आज की सूरत भी कल हर बार बदलेगी।
वो सीना चीर के नदिया का फिर आगे को बढ़
जाना
बुरी आदत हो कश्ती की तो क्यों पतवार बदलेगी?
'शरद' पढ़ लिख गया है पर अभी फ़ाके बिताता है
ख़बर उसको न थी क़िस्मत जो हों कलदार बदलेगी।
११ जनवरी २०१०
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