अनुभूति में
शरद तैलंग की रचनाएँ
नई गज़लें
इतना ही अहसास
कभी जागीर
बदलेगी
ज़िंदगी की
साँझ
मुक्तक में
तीन
मुक्तक
कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई
सिलवटें
अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी
गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ
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जाने क्यों
युग बीत गया है
बूढे पीपल को
सूरज से लड़ते लड़ते।
खोखले तने के ऊपर खड़ी हुई,
जर्जर व्यवस्था के उपरान्त
जाने क्यों पसन्द है उसे
मुसाफिरों की उतरती थकान,
बीड़ी का धुआं,
बंदरों की सबसे ऊंची डाल पर बैठक,
लिपटे हुए कच्चे सूत के घागे,
महिलाआें की आस्था,
शरारती बालक के हाथ में बंधा प्लास्टर,
मौसम के व्यंग वाण,
रात में समीप से गुज़रते लोगों के मन में
जिन्न का भय,
युग बीतेगा पर बंद ना होगी
ये लड़ाई।
जाने क्यों
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