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आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

 

घर की कुछ चीज़ें पुरानी

जब कबाड़ी घर की कुछ चीज़ें पुरानी ले गया
वो मेरे बचपन की यादें भी सुहानी ले गया।

वक़्त ने भी आदमी से इस तरह सौदा किया
कुछ तजुर्बे दे के वो उसकी जवानी ले गया।

हादसे के बाद इक अख़बार वाला आ गया
बातों ही बातों में वो मेरी कहानी ले गया।

दिन ढले जाकर तपिश सूरज की यों कुछ कम हुई
अपने पहलू में उसे सागर का पानी ले गया।

क्या पता इस ज़िंदगी में फिर मिलें या ना मिलें
बस 'शरद' यह सोचकर उसकी निशानी ले गया।

16 मई 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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