घर की कुछ चीज़ें
पुरानी
जब कबाड़ी घर की कुछ चीज़ें पुरानी ले गया
वो मेरे बचपन की यादें भी सुहानी ले गया।
वक़्त ने भी आदमी से इस तरह सौदा किया
कुछ तजुर्बे दे के वो उसकी जवानी ले गया।
हादसे के बाद इक अख़बार वाला आ गया
बातों ही बातों में वो मेरी कहानी ले गया।
दिन ढले जाकर तपिश सूरज की यों कुछ कम हुई
अपने पहलू में उसे सागर का पानी ले गया।
क्या पता इस ज़िंदगी में फिर मिलें या ना मिलें
बस 'शरद' यह सोचकर उसकी निशानी ले गया।
16 मई 2007 |