अनुभूति में
शरद तैलंग की रचनाएँ
नई गज़लें
इतना ही अहसास
कभी जागीर
बदलेगी
ज़िंदगी की
साँझ
मुक्तक में
तीन
मुक्तक
कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई
सिलवटें
अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी
गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ
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मेरी ओर निहारो
आज नशीले नयनों से तुम
मेरी ओर निहारो।
बौराए आमों के उपवन
हलचल करती दिल की धड़कन
हुई पल्लवित क्यारी क्यारी
ओ मदमस्त बहारों।
नील गगन के नीलेपन सी
मनमोहक ये तेरी आँखें
सुनो कहीं न धोखा खाना
सूरज चाँद सितारों।
स्वर्णिम आभामय मुखमण्डल
पर बिंदिया का तेज सुनहरा
घायल न कर दे ये सबको
इतना नहीं सँवारो। |