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अनुभूति में शरद तैलंग की रचनाएँ

नई गज़लें
इतना ही अहसास

कभी जागीर बदलेगी
ज़िंदगी की साँझ

मुक्तक में
तीन मुक्तक

कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई 
सिलवटें

अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

  मेरा साया

मेरा साया मुझे हर वक्त कुछ बदला सा लगता है
मगर ये साथ देता है तो फिर अपना सा लगता है।

सितारे भी तो रातें जाग कर हरदम बिताते हैं
अब अपना दर्द उनके सामने अदना-सा लगता है।

नदी जब सूख जाती है तो खुश होते किनारे हैं
दखल देना किसी का बीच में गन्दा-सा लगता है।

अगरबत्ती जलाने का हो मक़सद कुछ भी अब उनका
मुझे ये क़ैद से खुशबू रिहा करना-सा लगता है।

भले कितना बड़ा बन जाए अब इन्सान दुनिया में
मगर वो माँ की नज़रों में सदा बच्चा-सा लगता है।

कलम मेरी भी इक दिन देखना दुनिया बदल देगी
'शरद' ये सोचता है तो उसे सपना-सा लगता है।

२२ जून २००९
 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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