मेरा साया
मेरा साया मुझे हर वक्त कुछ बदला सा लगता है
मगर ये साथ देता है तो फिर अपना सा लगता है।
सितारे भी तो रातें जाग कर हरदम बिताते हैं
अब अपना दर्द उनके सामने अदना-सा लगता है।
नदी जब सूख जाती है तो खुश होते किनारे हैं
दखल देना किसी का बीच में गन्दा-सा लगता है।
अगरबत्ती जलाने का हो मक़सद कुछ भी अब उनका
मुझे ये क़ैद से खुशबू रिहा करना-सा लगता है।
भले कितना बड़ा बन जाए अब इन्सान दुनिया में
मगर वो माँ की नज़रों में सदा बच्चा-सा लगता है।
कलम मेरी भी इक दिन देखना दुनिया बदल देगी
'शरद' ये सोचता है तो उसे सपना-सा लगता है।
२२ जून २००९
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