फना जब भी
फना जब भी हमारे राज़ होंगे
अलग जीने के ही अन्दाज़ होंगे।बहुत महफूज़
है पिंजरे में चिड़िया
गगन में तो शिकारी बाज़ होंगे।
खफ़ा उनसे मैं होना चाहता हूँ
मगर डर है कि वो नाराज़ होंगे।
ज़रा पन्नों को हौले से पलटना
वहाँ नाज़ुक भी कुछ अल्फाज़ होंगे।
वो दिन कब आएगा हाथों में उनके
तमंचों की जगह पर साज़ होंगे।
'शरद' के राज़ ही जिसने है खोले
भला किसके वो अब हमराज़ होंगे।
२२ जून २००९
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