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अनुभूति में शरद तैलंग की रचनाएँ

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जब दिलों में
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तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

  फना जब भी

फना जब भी हमारे राज़ होंगे
अलग जीने के ही अन्दाज़ होंगे।

बहुत महफूज़ है पिंजरे में चिड़िया
गगन में तो शिकारी बाज़ होंगे।

खफ़ा उनसे मैं होना चाहता हूँ
मगर डर है कि वो नाराज़ होंगे।

ज़रा पन्नों को हौले से पलटना
वहाँ नाज़ुक भी कुछ अल्फाज़ होंगे।

वो दिन कब आएगा हाथों में उनके
तमंचों की जगह पर साज़ होंगे।

'शरद' के राज़ ही जिसने है खोले
भला किसके वो अब हमराज़ होंगे।

२२ जून २००९
 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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