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अनुभूति में शरद तैलंग की रचनाएँ

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इतना ही अहसास

कभी जागीर बदलेगी
ज़िंदगी की साँझ

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कविताओं में
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अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
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आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

  ज़िंदगी की साँझ

ज़िन्दगी की साँझ ज्यों ज्यों ढ़ल रही है
एक बस तेरी कमी ही खल रही है।

हौसला तो देखिए इस नाव का भी,
मूँग छाती पर नदी की दल रही है।

खून परवाने का उसके मुँह लगा है,
शाम होते ही शमां फिर जल रही है।

चाल अपनी ज़िन्दगी तो चल चुकी है,
मौत अब तो चाल अपनी चल रही है।

चार पहियों पर सदा चलता था उसकी,
चार कन्धों पर सवारी चल रही है।

वो 'शरद' रोटी भी तेरी छीन लेंगे,
दाल अवसरवादियों की गल रही है।

११ जनवरी २०१०

 

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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