उसके आगे सच्चे मन से,
दो पल ही अरदास बहुत है।
किस्मत हो न सीता जैसी,
महल तो कम वनवास बहुत है।
जो मज़हब सबको जीने दे
उसपर ही विश्वास बहुत है।
जो हैं पानीदार यहाँ पर,
उनकी देखो प्यास बहुत है।
अन्तिम इच्छा पूछ रहे हो,
अब जीने की आस बहुत है।
ये सुनना गाली जैसा है -
'तू अफ़सर का ख़ास बहुत है।
बहुओं पर छा गई एकता
अब ख़तरे में सास बहुत है।
कुछ सराहते ग़ज़ल 'शरद' की,
कुछ कहते बकबास बहुत है।
११ जनवरी २०१०