अनुभूति में
शरद तैलंग की रचनाएँ
नई गज़लें
इतना ही अहसास
कभी जागीर
बदलेगी
ज़िंदगी की
साँझ
मुक्तक में
तीन
मुक्तक
कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई
सिलवटें
अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी
गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ
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मंज़ूर न था
वो तो शायद उसे मंजूर न था
आख़िरी वक़्त मेरा दूर न था।
मुझे मालिक का नमक ले बैठा
वरना मेरा कोई कुसूर न था।
किस ज़माने की बात करते हो
किस ज़माने में ये दस्तूर न था।
अब भले लाख बहाने कर लो
गांव तेरा शहर से दूर न था।
फिर गए साल ये सौगात मिली
फिर कई मांगों में सिंदूर न था।
जो हैं बदनाम उनका नाम हुआ
तू 'शरद' इसलिए मशहूर न था।
1 नवंबर 2006
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