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अनुभूति में शरद तैलंग की रचनाएँ

नई गज़लें
पत्थर सा जो दिल
बहुत से लोग
मेरे बच्चे

मुक्तक में
तीन मुक्तक

कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई 
सिलवटें

अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इतना ही अहसास

इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
कभी जागीर बदलेगी

घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
ज़िंदगी की साँझ
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

  बहुत से लोग

बहुत से लोग नंगे पाँव जब सडकों पे चलते हैं,
उन्हें बस देखने भर से हमारे पैर जलते हैं

ये दौलत हाथ का है मैल, कहते है सुना सबको,
जिन्हें मिलती नहीं है वे तभी तो हाथ मलते हैं

भले सूरज के जैसा कोई भी बन जाए दुनिया में
मगर वे लोग भी जब वक़्त आता है तो ढ़लते हैं

बुज़ुर्गों की बदौलत ही रवायत है अभी ज़िन्दा,
नहीं तो हम सभी बस वक़्त के साँचें में ढ़लते हैं

बिना सोचे, बिना समझे, जो कुछ भी बोल देते हैं,
बस ऐसे लोग ही दुनिया में सब लोगों को खलते हैं

ग़ज़ल सुन कर ’शरद’ की लोग आपस में लगे कहने,
रहा सुनने को कुछ बाक़ी नहीं, अब घर को चलते हैं

२८ जून २०१०



 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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