अनुभूति में
शरद तैलंग की रचनाएँ
नई गज़लें
पत्थर सा जो दिल
बहुत से लोग
मेरे बच्चे
मुक्तक में
तीन
मुक्तक
कविताओं में
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई
सिलवटें
अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इतना ही अहसास
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
कभी जागीर
बदलेगी
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
ज़िंदगी की
साँझ
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी
गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ
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मेरे बच्चे
मेरे बच्चे जब सयाने हो गए है,
दूर तब उनके ठिकाने हो गए है
पाई जैसे थे कभी रुपया में वो तो,
अब तो हम ही चार आने हो गए है
अब श्रवण और राम के किस्सों से क्या हो ?
वे तो सब गुज़रे फ़साने हो गए है
आ गई है जब सदी इक्कीसवीं अब,
हम लगा सदियों पुराने हो गए हैं
अब तो बस फिरते है हम खुद को बचाते
तीर वो हम तो निशाने हो गए हैं
आज भी अक्सर छलक जाते हैं आँसू,
उनको बिछडे ही ज़माने हो गए हैं
२८ जून २०१०
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