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अनुभूति में शरद तैलंग की रचनाएँ

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पत्थर सा जो दिल
बहुत से लोग
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मुक्तक में
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फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई 
सिलवटें

अंजुमन में
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इतना ही अहसास

इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
कभी जागीर बदलेगी

घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
ज़िंदगी की साँझ
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी

गीतों में
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ

  मेरे बच्चे

मेरे बच्चे जब सयाने हो गए है,
दूर तब उनके ठिकाने हो गए है

पाई जैसे थे कभी रुपया में वो तो,
अब तो हम ही चार आने हो गए है

अब श्रवण और राम के किस्सों से क्या हो ?
वे तो सब गुज़रे फ़साने हो गए है

आ गई है जब सदी इक्कीसवीं अब,
हम लगा सदियों पुराने हो गए हैं

अब तो बस फिरते है हम खुद को बचाते
तीर वो हम तो निशाने हो गए हैं

आज भी अक्सर छलक जाते हैं आँसू,
उनको बिछडे ही ज़माने हो गए हैं

२८ जून २०१०

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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