अनुभूति में
शरद तैलंग की रचनाएँ
नई गज़लें-
आपकी बातों में
खुशी की
तरह
जब से मेघों
से मुहब्बत
दुकानों में सजा सामान
रोशनी तो
रोशनी है
वो सबकी
प्रार्थनाओं पर
मुक्तक में-
तीन
मुक्तक
छंदमुक्त में-
जाने क्यों
नींद
फूलों का दर्द
लाचारी
लेखक ऐसे ही नहीं बनता है कोई
सिलवटें
अंजुमन में-
अपनी करनी
अपनी बातों में
आपका दिल
आप तो बस
आबरू वो इस तरह
इतना ही अहसास
इस ज़मीं पर
उस शख्स की बातों का
कभी जागीर
बदलेगी
घर की कुछ चीज़ें पुरानी
जब दिलों में
ज़िंदगी की
साँझ
जो अलमारी में
तलवारें
दिल के छालों
पत्थर सा जो दिल
पत्थरों का अहसान
पुराने आईने में
बहुत से लोग
फना जब भी
मेरा साया मुझे
मेरे बच्चे
मंज़ूर न था
यारी जो समंदर को
लड़कपन के दिन
समंदर की निशानी
गीतों में-
मनवीणा के तार बजे
मेरी ओर निहारो
सीढ़ियाँ दर सीढ़ियाँ
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आपकी बातों में
आपकी बातों में अब कुछ दम नहीं
ये जमाना कह रहा है हम नहीं।
चल रहीं ऐसी हवाएँ हर तरफ
जिन हवाओं का कोई मौसम नहीं।
चार गजलें जिसने कह दीं हैं यहाँ
खुद को ग़ालिब से समझता कम नहीं।
मत लगाना टाट का पैबन्द तुम
टाट बन सकता कभी रेशम नहीं।
बड़बड़ाते क्यों नहीं तुम नींद में
ज़िन्दगी में क्या तुम्हें कुछ गम नहीं?
आपने जो घाव बातों के दिए
वो मिटा सकती कोई मरहम नहीं।
उसका जीना भी कहाँ जीना कोई
मौत पर जिसकी कोई मातम नहीं।
क्यों ‘शरद’ पाता नहीं सम्मान तू
तू लगाता ही कभी तिकड़म नहीं।
२४ फरवरी २०१४
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