समभाव हुए हैं
भाव बहुत बेभाव हुए हैं
दिन तो दिन रातों के भी अभाव हुए हैं
कितने अँधियारे कष्टों में काटे
उजियारे कितने अलगाव हुए हैं
अपने अपने किस्से हर कोई जीता है
औरों के किस्से किससे समभाव हुए हैं
दूर निकल आए जब तक भ्रम टूटे
वक्त बहुत बीता बेहद ठहराव जिए हैं
नहीं कहूँगा दुख मैं इसको
सुख ने भी कितने घाव दिए हैं
भाव बहुत बेभाव हुए है
१ फरवरी २०२४ |