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संकलन में
गुच्छे भर अमलतास-मरुधरा
                -आतप
                -विरक्ति

  सुबह के भूले

क्या लौटना होगा
उस द्वीप पर
जहाँ से नौका चली थी
भूल कर तल्खियाँ
मटमैला धूसर आसमान

रास्ते कंटीले
पथ अपरिचित
मंज़िल भटकी हुई

चूक रही अब उम्मीदें
अपना उत्स पाने की
उम्र का प्रौढ़ होना
वहन करना बोझिल कर्तव्य

ऐसे में लौटना ही पड़े
गंदगी से पटे
सुविधा-रहित द्वीप पर
तब भी
बहुत घाटे का नहीं
यह करार

अच्छा है ताउम्र भटकने से
लौटना अपने ही शहर

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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