एक घटना
उत्ताल तरंगों की तरह
फैल गया है
मेरे मन पर
सराबोर हूँ मैं
उल्लसित हूँ
झाग बन उफन रहा है
जल की सतह पर
धरा के छोर पर
छोड़ गया है निशान
क्षार, कूड़ा-करकट अवांछित
यही है फेनिल यथार्थ
गुंजार और हुंकार बन
बिखर गया है तटीय क्षेत्र में
एक प्रक्रिया, एक घटना,
एक टीस बन
ऋतुओं की तरह
बदल रहा है चोला
बैसाख सा ताप
आषाढ़ की व्यग्रता
भाद्रा की वृष्टि
शरद की शीत
और शिशिर की
कंपकंपी बन
जन्मा है धरती पर
अकलुष प्रेम
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