थार का जीवट
अब तक तो
बहुत भला है
रेती में भी पौधे हैं
कांस, आक और
छोटे-छोटे लंबे पत्तों वाले
नन्हे 'जोजरू'
अब तक तो
बहुत भला है
लू की मार है मद्धम
है हवा भी थोड़ी नम
क्या होगा जो मेघ नहीं बरसे
सावन सूखा जाएगा
मरुधरा यह ताप से फट-फट जाएगी
वनस्पतियाँ सूखेंगी
नर-नारी, पशु-पक्षी सब
प्यास से तड़पेंगे
कितना कष्ट सहेंगे
आसार नहीं अच्छे हैं
पर कितना जीवट है!
कहता है वह वृद्ध-
विपदाएँ झेलीं
न जाने कितनी बार
बना महाप्रलयंकारी
यह थार
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