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संकलन में
गुच्छे भर अमलतास-मरुधरा
                -आतप
                -विरक्ति

  थार का जीवट

अब तक तो
बहुत भला है
रेती में भी पौधे हैं
कांस, आक और
छोटे-छोटे लंबे पत्तों वाले
नन्हे 'जोजरू'

अब तक तो
बहुत भला है
लू की मार है मद्धम
है हवा भी थोड़ी नम

क्या होगा जो मेघ नहीं बरसे
सावन सूखा जाएगा
मरुधरा यह ताप से फट-फट जाएगी

वनस्पतियाँ सूखेंगी
नर-नारी, पशु-पक्षी सब
प्यास से तड़पेंगे
कितना कष्ट सहेंगे
आसार नहीं अच्छे हैं

पर कितना जीवट है!
कहता है वह वृद्ध-
विपदाएँ झेलीं
न जाने कितनी बार
बना महाप्रलयंकारी
यह थार

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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