एक वृत्तचित्र:
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व-संध्या पर
इन दिनों
छाया चित्र बताते हैं उम्र
इन दिनों
सघन वृक्ष मिलते हैं विरल
इन दिनों पुरुष
चार आश्रमों का मोहताज नहीं
वे आपस में
घुल-मिल गए हैं इस तरह
कि बची रहे गृहस्थी
काफ़ी है यह
इन दिनों ब्रह्मचर्य
सांप्रदायिकता की चपेट में आकर
है लहूलुहान
गृहस्थ हैं तन्मय चाकरी में
वानप्रस्थ से लेकर सन्यास तक
दुहाई राजनीति की
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष
सब राजनीति के उत्पाद और
राजनीति के बस वाहक
इन दिनों
कठिन है यह सोच पाना
कि सामंतकाल में व्यवसाय
पूंजीवादी आर्थिक नीतियों से
नहीं खाता था मेल
इन दिनों
ब्रह्मचारी का 'ब'
बदल गया है आई टी के 'इ' में
इंटरनेट पर
भंडार है अनंत सूचनाओं का
शरीर और काम-विषयक
इन दिनों
मौसम की भविष्यवाणी
ग़लत या सही
हो सकती है कुछ भी
अब एनीमेशन, स्केनिंग और
मिक्सिंग के परिणाम
'शालीन आदमी' से
'खूँखार जानवर' तक
हो सकते हैं अदल-बदल
इस विज्ञापनी युग में
दोनों हैं बहुत 'चार्मिंग'!
उपभोग वस्तुओं के जाल में घुसे
वे मुस्करा रहे हैं शान से
ध्यान दें कृपया!
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व-संध्या पर
प्रसारित होने जा रहा है
देश के नाम संदेश
लेकिन पहले एक कमर्शियल ब्रेक!
१ अगस्त २००६
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