मूर्ख
इधर जब
छूट गया मेरा
कविताएँ लिखना
देख लिया
आँखों ने बेतरह
बरबाद होना
ईराक का
कई कई अक्सों में
दुनिया का
बेकस वजूद उभरा
भयानक ग्रीष्म के बाद
अरअरा कर गिरा
दो चार बार पानी
हुए हरे पेड़ पौधे
ताजे धुले पत्तों से
टपकी बूँदें
गौरैया ने छत पर
सिंटेक्स की टंकी पर बैठ
फड़फड़ाए पंख
हमारे जरायु प्रधानमंत्री
हुए चीन रवाना
उधर दौड़ पड़े मुशर्रफ
वाशिंग्टन की ओर
न सुलझी सीमा समस्या
न थमा आतंक
हम राजनीतिक लटकों की
लपेट में चकरघिन्नी से फँसे
रह गए मन मसोस कर
क्यों हुए हम इतने मूर्ख?
बुद्धु बक्से की ढेर सारी बतकही
सुनकर नहीं लगा पाए
ठहाका एक भरपूर!
|