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स्वप्न विशद ऊर्जा का
टल गया है निर्णय
कहीं जाने का
और जाकर भी होता क्या
कॉफी-हाउस में बैठ कुछ अखबारी बातें
कॉफी की चुस्कियाँ
और
सिगरेट के धुएँ के साथ
समय काटने का शगल
यह समय भी कुछ अजीब है
काटा नहीं जाता कट जाता है
अपनी तमाम बुराइयों-अच्छाइयों
के साथ
कुछ ही देर पहले बरसी है एक बदली
अभी ही बंद हुए हैं मर्म से भरे टेपित गीत
सूर के पद, मीरा के भजन
और पति-पत्नी के बीच
चलता अनवरत
एक व्यर्थ संवाद
सोच ही नहीं सकता पति
जिस ढँग से सोच सकती है पत्नी
इतने दिनों में
क्या से क्या हो गया
ग्रीष्म की तपती लू से
बचा लिया,
बरखा की
शीतल फ़ुहारों ने
नहीं बचा सका कोई
पृथ्वी के गर्भ में पलते
ज्वालामुखी से
अपराध कैसा? किसने किया?
कौन करेगा प्रायश्चित
लेर्मोंन्तेव का नायक
डोरियनग्रे की तस्वीर
मैं नहीं,
कोई और ही है, इन प्रसंगों के पीछे
विवश है मानव मन
अपराधी वो नहीं
जो ताक रहे हैं निर्जन द्वार
अपराधी है भीनी-भीनी महक
मोहक पुष्पपराग
झीने बादलों के
आवरण से
भुवन भास्कर की श्लथ किरणें
हो चुकी हैं ओझल
शीतल आर्द्र पवन
पुनः हो उठी है चंचल
बरसेगी फिर
बदली एक
ये क्षण निर्णायक भी नहीं हैं
इतिहास की वर्तुल गति
बदला हुआ न्यूक्लियस
बाहरी आर्बिट में घूमता इलेक्ट्रॉन
बाह्य उर्जास्त्रोत से किया जाना है विलग
बहुत शुभ दिखते हैं विलग होने का
आभास देने वाले दिवस
दिख जाते हैं जल से भरे पात्र प्रात:
कल्याणकारी नीलकंठ उड़-उड़ बैठते हैं
टेलीफोन के तारों पर
अपना पहला आर्बिट
छोड़ देता है इलेक्ट्रॉन
परमाणु विखंडन की
अनचाही प्रतीक्षा
रेडियोधर्मिता रोकने का प्रयास
विशद ऊर्जा का स्वप्न
निरर्थक!
वर्तुल गति का
कलुषित सत्य
साक्षी है इतिहास
टीसता है व्यग्र मन
सज़ा तो मिलेगी
आतताइयों को
यदि चला यह चक्र
युगों तक
बिखरने लगे हैं मेघ
सूर्य रश्मियाँ हो गई हैं
अनावरत
तल्ख नहीं हैं ग्रीष्म की भाँति
यही उपसंहार है
यही भविष्य का इन्गित
छुटता है मुटि्ठयों से
कैद किया हुआ
अनंत आसमान
छुटते हैं कनक कण
बिखर जाता है
पुष्प पराग
फटने लगती हैं
परमाणु भटि्ठयाँ
फैल जाती है दूर तक
धरा पर रेडियोधर्मिता।
१ फरवरी २०२३
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