अनुभूति में
शैलेन्द्र चौहान की
रचनाएँ -
नई रचनाएँ-
अग्निगर्भा हूँ मैं
जय-जयकार
स्वप्न विशद ऊर्जा का
हम शत्रु नहीं होना चाहते थे
छंदमुक्त में-
आदिवासी
आषाढ़
बीतने पर
एक घटना
एक वृत्तचित्र: स्वतंत्रता दिवस की
पूर्व-संध्या पर
क्या हम नहीं कर सकते कुछ भी
कबीर बड़
काँपते हुए
कोंडबा
चिड़िया और कवि
जघन्यतम
जीवन संगिनी
तबादला
थार का जीवट
पतंग आकाश में
प्रणय रत
फफूँद
भद्रावती
महाकाल
मूर्ख
लैंडस्केप
लोअर परेल
शब्द नहीं झरते
सम्मोहन
स्त्री प्रश्न
सुबह के भूले
संकलन में
गुच्छे भर अमलतास-मरुधरा
-आतप
-विरक्ति
|
|
हम शत्रु नहीं होना चाहते धे
हम एक-दूसरे से परिचित थे
कुछ औपचारिक और
मतलब भर की बातें करते थे
कभी- कभार हँसी मजाक भी
इस परिचय को
यों सतही तौर पर मित्रता कह लेते थे
यद्यपि हम एक-दूसरे के बारे में
कोई गहरी समझ नहीं रखते थे
न हम एक-दूसरे के बारे में
अधिक जानते ही थे
हम मित्र नहीं थे
हमें एक-दूसरे की सहायता की कभी
जरूरत नहीं पड़ी
हमने एक-दूसरे के खिलाफ
कभी कोई बात नहीं की
और एक दिन
जब एक को लगा दूसरा उसका मित्र बन गया है
दूसरे ने भी कुछ ऐसा ही प्रकट किया
अगले ही क्षण वे अलग-अलग
दिशाओं मे प्रस्थान कर गए
वे यानि कि हम
मित्र नहीं थे और
हम एक-दूसरे के शत्रु नहीं होना चाहते थे
१ फरवरी २०२३
|