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छवि खो गई जो
हो गई रात स्याह काली
नीरव हो गया वितान
खग, मृग सब निश्चेष्ट
दृग ढूँढ़ते वह छवि खो गई जो
बढ़ रहा अवसाद तम सा
साथ रजनी के छोड़ तुमने दिया साथ
कुछ दूर चल के रह गया खग
फड़फड़ाता पंख नील अंबर में
भटकता चहुँ ओर
वह
लौटेगा धरा पर होकर थकन से चूर
अनमना बैठा रहेगा
निर्जन भूखण्ड पर अप्रभावित
अलक्ष जग के व्यापार से
१ फरवरी २०२४ |