याद आता है
जब कभी गुज़रा ज़माना याद आता है
बना मिट्टी का अपना घर पुराना याद आता है
वो पापा से चवन्नी रोज़ मिलती जेब खर्चे को
वो अम्मां से मिला एक आध-आना याद आता है
वो छोटे भाई का लड़ना, वो जीजी से मिली झिड़की
सभी कुछ शाम को फिर भूल जाना याद आता है
सुबह मंदिर की पूजा साथ मस्ज़िद की अजानों का
अजब-सा एक गठबंधन सुहाना याद आता है
वो काली गाय रामू की वो अब्दुल की बड़ी बकरी
वो जंगल साथ जाना और आना याद आता है
वो अपना बाग अपने हाथ से रोपे हुए पौधे
वो उसके साथ संग क्यारी बनाना याद आता है
वो घर के सामने की अधखुली खिड़की अभी भी है
वहाँ पर छिप किसी का मुसकुराना याद आता है
वो उसका रोज़ ही मिलना न मिलना फिर कभी कहना
ज़रा-सी बात पर हँसना-हँसाना याद आता है
1 जून 2006
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