क्यों करते हो बात
क्यों करते हो बात शहर की।
जहाँ मुसीबत दुनिया भर की।।
फुटपाथों पर कटी ज़िंदगी।
रही तमन्ना अपने घर की।।
सपनों में दिखती तसवीरें।
कल के बिगड़े हुये सफ़र की।।
घर तक पीछा नहीं छोड़तीं।
दिन भर की बातें दफ्तर की।।
बच्चों ने ये कब सोचा है।
हमने कैसे गुज़र बसर की।।
सब कुछ लुटा चुके तब जाना।
कद्र नहीं है किसी हुनर की।।
जब भी चला जमीं को देखा।
नज़र नहीं मैंने ऊपर की।।
१६ मार्च २००९
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