खेतों में जिनका देवालय
खेतों में जिनका देवालय माटी से है जिनको प्यार
पिघला उनके लिए हिमालय बहता बन गंगा की धार
जिनके लिए शरद बुनती है
हरियाली का नया दुशाला
जिनकी मुसकानों के आगे
धुँधला सूरज का उजियाला
जिनके चरण जरा छू जाएँ मरुथल मेघ मल्हारें गाएँ
उनसे पतझर हार मानता जिनकी नज़र नज़र कचनार
जिनको अपनी बाँहों पर है,
अपने से ज़्यादा विश्वास
उनके गीत धरा गाती है
दुहराता चलता आकाश
जो हैं नवयुग के भागीरथ हमको उनके आँगन तीरथ
उनको मँझधारों का भय क्या जिनकी लहर-लहर पतवार
जिनका जीवन कर्मठता का
लिखता रहा अमर इतिहास
अंधियारा पीकर जो देते
जीवन को उजियाली आस
जिनका हर पग है इस्पाती स्वयं सफलता गले लगाती
ऐसे श्रमवीरों को मेरा हृदय नमन है बारंबार
1 जून 2006
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