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अनुभूति में सजीवन मयंक की
रचनाएँ -

नई ग़ज़लें-

एक दुश्मन
क्यों करते हो बात
मुझे चिढ़ा रहे हैं
यही सोचकर निकला

क्षणिकाओं में-
पाँच क्षणिकाएँ

अंजुमन में-
अजब यह माजरा देखा
अब आए बादल
आकाश साफ़ है
ज़िंदगी सिर्फ़ पानी रही
तूफ़ान से टकराते हैं
नचाते रहे पहले कठपुतलियाँ
भटक रहे हैं बाबू जी
याद आता है
सभी को लुत्फ़ आता है
हमको कोई गिला नहीं

कविताओं में-
जीवन क्या है
दीये का वक्तव्य

गीतों में-
अमावस का दर्
असीम स्वर खटक रहे हैं
खेतों में जिनका देवालय
गीता हो रहीम के घर में
पथ के विंध्याचल

संकलन में-
मेरा भारत-
आज तिरंगा फहराता है शान से
माटी चंदन है
मातृभाषा के प्रति-
हिंदी ने हमको एक रखा
हिंदी में कितना अपनापन
जग का मेला-
बंदर मामा

 

अमावस का दर्द

मिला एक ही चाँद पूर्णिमा जीवन भर मुसकाती है
भला अमावस अपने तारे कब पूरे गिन पाती है

एक कन्हैया से वृंदावन,
अब तक पुलकित होता है
एक कुमुदिनी खिल जाने से
सरवर मुखरित होता है
कोलाहल में तो कोयल भी अपने स्वर खो जाती है
सीमित हो आकाश तो हर धुन शहनाई बन छाती है

एक ध्रुव तारा क्या कम है,
अब तक राह दिखाता है।
स्वाति बूँद का प्यासा चातक
क्या सावन से पाता है
सागर की अथाह जलनिधि से प्यास नहीं बुझ पाती है
लेकिन एक बूँद सरिता की गंगा जल बन जाती है

मन तो युग से बंजारे हैं
उनको एक ठिकाना दे
दो ही सपने सजा अंक में
जिनको नरम बिछौना दे
मरुथल में बढ़ते जाने से मृगतृष्णा ललचाती है।
दो ही फूल खिलें तो डाली मधुवन-सी इतराती है।।

1 जून 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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