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अनुभूति में सजीवन मयंक की
रचनाएँ -

नई ग़ज़लें-

एक दुश्मन
क्यों करते हो बात
मुझे चिढ़ा रहे हैं
यही सोचकर निकला

क्षणिकाओं में-
पाँच क्षणिकाएँ

अंजुमन में-
अजब यह माजरा देखा
अब आए बादल
आकाश साफ़ है
ज़िंदगी सिर्फ़ पानी रही
तूफ़ान से टकराते हैं
नचाते रहे पहले कठपुतलियाँ
भटक रहे हैं बाबू जी
याद आता है
सभी को लुत्फ़ आता है
हमको कोई गिला नहीं

कविताओं में-
जीवन क्या है
दीये का वक्तव्य

गीतों में-
अमावस का दर्
असीम स्वर खटक रहे हैं
खेतों में जिनका देवालय
गीता हो रहीम के घर में
पथ के विंध्याचल

संकलन में-
मेरा भारत-
आज तिरंगा फहराता है शान से
माटी चंदन है
मातृभाषा के प्रति-
हिंदी ने हमको एक रखा
हिंदी में कितना अपनापन
जग का मेला-
बंदर मामा

 

पाँच क्षणिकाएँ

1- बुरा समय

हम ने कुछ द्रव्य
बुरे समय के लिए जोड़ा था,
आज उसे खा रहे हैं,
क्योंकि अब हमारे बच्चे कमा रहे हैं।

2- ईर्ष्या

हम ठोकर खाने के बाद भी
राह के पत्थर,
इसलिए नहीं हटाते,
क्योंकि हम चाहते हैं-
जो भी हमारे पीछे आएँ
वे भी ठोकर खाएँ।

3- वर्षगाँठ

जिस दिन
उम्र की रस्सी
एक और बल लेती है-
जो उसे छोटा कर देती है।।

4- स्मृतिपत्र

प्रिय,
तुम्हारी याद,
दिन रात सताती है,
हर पल भूले नहीं भुलाती है,
वापसी तार दे रहा हूँ-
थोड़े लिखे को बहुत समझना,
राशन कार्ड कहाँ रखा है लिखना।।

5-आदर्श आचार

हम ने सब आदर्श विचार
डाल कर अचार
रख दिए गलने-
कि कभी समय आएगा,
तो खाएँगे।
किसी आम सभा में सुनाएँगे।।

24 जनवरी 2007

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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