आकाश साफ़ है
आकाश साफ़ है मगर खटका ज़रूर है।
दिखता नहीं है फिर भी कुछ अटका ज़रूर है।
बस आ रही है बैठकर डोली में हर खुशी।
जिसके लिए हर आदमी भटका ज़रूर है।
ये देश जा रहा था रसातल को दोस्तों।
अब जा किसी खजूर में अटका ज़रूर है।
बर्तन तो आम आदमी के पेट खा गए।
घर के किसी कोने में एक मटका ज़रूर है।
शीशा ए दिल हमारा किसी ने नहीं तोड़ा।
बस उनके देखने से कुछ चटका ज़रूर है।
हो लाल किला दिल्ली का या ताजमहल हो।
छत होगी जहाँ पर वहाँ टपका ज़रूर है।
दे देकर वोट अपना दिवाला निकल गया।
ले ले जिस हर कोई सटका ज़रूर है।
24 अगस्त 2006
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