हिंदी में कितना अपनापन
हिंदी में कितना अपनापन, देखो तो परदेश में।
क्यों हिंदी का सूना आँगन फिर अपने ही देश में।।
देश वही उन्नत होता है,
जिसकी भाषा एक हो।
भले वहाँ पर धर्म जाति के,
बंधन कई अनेक हों।।
यहाँ भटकती कई भाषाएँ बंजारिन के वेष में।
क्यों हिंदी का सूना आँगन फिर अपने ही देश में।।
मिला राष्ट्र भाषा हिंदी को,
इतना दृढ़ आधार है।
हिंदी के साहित्य कोष का,
सब पर कर्ज़ उधार है।।
हिंदी में जो चाहो कह लो छोटे से संदेश में।
क्यों हिंदी का सूना आँगन फिर अपने ही देश में।।
भारत में हिंदी भाषा में,
सारे विधि विधान हैं।
शायद ही कोई ऐसा हो,
जो हिंदी से अंजान है।।
हिंदी का हो फूल सुगंधित भारत माँ के केश में।
क्यों हिंदी का सूना आँगन फिर अपने ही देश में।।
सजीवन मयंक
16 सितंबर 2006
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