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बीते कल के रंग
उत्सव की वह सौंधी खुशबू ना अंगूरी बेल
गली मुहल्ले भूल गए हैं
बच्चों वाले खेल
लट्टू, कंचे, चंग, लगौरी बीते कल के रंग
बचपन कैद हुआ कमरों में मोबाइल के संग
बंद पड़ी हैं अब बगिया में
छुक छुक वाली रेल
बारिश का मौसम हैं, दिल में आता बहुत उछाव
लेकिन बच्चे नहीं चलाते अब कागज की नाव
अंबिया लटक रही पेड़ों पर
चलती नहीं गुलेल
दादा-दादी, नाना-नानी अब बदले हालात
राजा-रानी, परी कहानी नहीं सुनाती रात
छत पर तारों की गिनती
सपनों ने कसी नकेल१ मई २०२३
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