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जिंदगी हमसे मिली
जिंदगी हमसे मिली थी
रेलगाड़ी में
बोझ काँधे पर उठाये
क्षीण साडी में
कोच में फैला हुआ
कचरा उठाती है
हेय नजरें झिड़कियाँ
दुत्कार पाती है
पट हृदय के बंद हैं इस
मालगाड़ी में
तन थकित, उलझी लटें
कुछ पोपला मुखड़ा
झुर्रियों ने लिख दिया
संघर्ष का दुखड़ा
उम्र भी छलने लगी
बेजान खाड़ी में
आँख पथराई, उदर की
आग जलती है
मंजिलों से बेखबर
दिन-रात चलती है
जिंदगी दम तोड़ती
गुमनाम झाड़ी में
१ मार्च २०१६
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