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पिता के लिये
पिता को समर्पित
कविताओं का संकलन
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याद बहुत बाबू जी आए |
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स्मृतियोँ के घन जब घिरकर,
मन के नभमण्डल पर छाए।
याद बहुत बाबूजी आए
बाबूजी से ही सीखा था
दो और दो होते हैं चार
जीवन की अनगढ़ राहों को
अच्छे काम करें गुलजार
नन्हें हाथ थामकर जिसने
गुर, जीने के सभी सिखाए
याद बहुत बाबूजी आए
होगा पथ में उजियारा भी
उनकी शिक्षा को अपनाया
सूने मन के गलियारे में
एक ज्ञान का दीप जलाया
कभी सहेली कभी सखा बन
हर नखरे चुपचाप उठाए
याद बहुत बाबूजी आए
चिंता चाहे लाख बड़ी हो
हँसी सदा मुख पर रहती थी
तुतलाती बतियाँ चुपके से
फिर काँधे पर ही सोती थी
बरगद की शीतल छाया में
जिसने सपने सुखद सजाए
याद बहुत बाबूजी आए
- शशि पुरवार
१५ सिंतंबर २०१४ |
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