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अनुभूति में शशि पुरवार की रचनाएँ -

नये गीतों में-
कमसिन साँसें
तिलिस्मी दुनिया
थका थका सा
दफ्तरों से पल
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
याद की खुशबू
समय छिछोरा

गीतों में-
अब्बा बदले नहीं
कण-कण में बसी है माँ
मनमीत आया है
महक उठी अँगनाई
व्यापार काला

 

कमसिन साँसें

करवट लेते रहे रात भर
आँखों में कटते हैं दिन
उमस भरी रातों के पलछिन

दर्प दिखाती खड़ी इमारत
सिमटे हैं नेह दालान
किरणें आती जाती देखें
सब बंद हैं रौशनदान

भीतर हवा सुलगती रहती
घुटन भरी साँसें कमसिन

सन्नाटा कमरे में पसरा
अंतस में है कोलाहल
दो पाटों के बीच घिरा, यह
नन्हा सा, मन है चंचल

इक अदद कहानी गढ़ते हैं
बीत रहे काले दुर्दिन

शाम सुबह, घर दिखते साये
एक दूजे से नाराज
खिड़की दरवाजे भी सुनते
फिर टिकटिक घडी का साज

टुकड़ा टुकड़ा धूप सहेजे
वो मन अँधियारे हर दिन

२३ मार्च २०१५

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