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अब्बा बदले नहीं
अब्बा बदले नहीं
न बदली है उनकी चौपाल
अब्बा की आवाज गूँजती
घर आँगन थर्राते हैं।
मारे भय के चुनियाँ मुनियाँ
दाँतों, अँगुली चबाते हैं।
ऐनक लगा कर आँखों पर
पढ़ लेते हैं मन का हाल
पूँजी नियम- कायदों की हाँ
नित प्रातः ही मिल जाती है
टूट गया यदि नियम, क्रोध से
दीवारे हिल जाती हैं।
अम्मा ने आँसू पोंछे गर
मचता तुरत बबाल।
पूरे वक़्त रसोईघर में
अम्मा खटती रहती है।
अब्बा के संभाषण अपने
कानों सुनती रहती है।
हँसना भूल गयी है
खुद से करती यही सवाल।
१० मार्च २०१४
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