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अनुभूति में शशि पुरवार की रचनाएँ -

नये गीतों में-
कमसिन साँसें
तिलिस्मी दुनिया
थका थका सा
दफ्तरों से पल
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
याद की खुशबू
समय छिछोरा

गीतों में-
अब्बा बदले नहीं
कण-कण में बसी है माँ
मनमीत आया है
महक उठी अँगनाई
व्यापार काला

 

तिलिस्मी दुनिया

काटकर इन जंगलों को
तिलिस्मी दुनिया बसी है
वो फ़ना जीवन हुआ, फिर
पंछियों की बेकसी है

चिलचिलाती धूप में, ये
पाँव जलते हैं हमारे
और आँखें देखती हैं
खेत के उजड़े नज़ारे

ठूँठ की इन बस्तियों में
पंख जलना बेबसी है

वृक्ष गमलों में लगे जो
आज बौने हो गए हैं
आम पीपल और बरगद
गाँव भी कुछ खो गए हैं

ईंट गारे के महल में
खोखली रहती हँसी है

तीर सूखे हैं नदी के
रेत का फिर आशियाँ है
जीव-जंतु गुम हुए जो
अब नहीं नामो-निशाँ है

चाँद पर जाने लगे हम
गर्द में धरती फँसी है

२३ मार्च २०१५

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