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कण कण में बसी है
माँ कण कण में बसी है
माँ
खुशबु उड़ती रसोई की
नासा में समाये
भोजन बना स्नेह भाव से
क्षुधा शांत कर जाय
प्रातः हो या साँझ की बेला
तुमसे ही सजी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
संतान के, सुख की खातिर
अपने स्वप्न मिटाये
अपने मन की पीर, कभी
ना घाव, कभी दिखलाए
खुशियाँ, घर के हर कोने में
तुमने ही भरी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
माँ ने, दुर्गम राहों पर भी
हमें चलना सिखाया
जीवन के हर मोड़ पर, हाँ
ज्ञान का दीप जलाया
संबल बन कर, हर मुश्किल में
संग खडी है माँ
कण कण में बसी है माँ।
शांत निश्छल उच्च विचार
मन को खूब भाते
माँ से मिले संस्कार, हम
जीवन में अपनाते
जीवन की हर अनुभूति में
कस्तूरी सी घुली माँ
कण कण में बसी है माँ।
१० मार्च २०१४ |