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अनुभूति में शशि पुरवार की रचनाएँ -

नये गीतों में-
कमसिन साँसें
तिलिस्मी दुनिया
थका थका सा
दफ्तरों से पल
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
याद की खुशबू
समय छिछोरा

गीतों में-
अब्बा बदले नहीं
कण-कण में बसी है माँ
मनमीत आया है
महक उठी अँगनाई
व्यापार काला

 

भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ

जिंदगी के
इस सफर में
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
गीत हूँ मैं,
इस सदी का
व्यंग का किस्सा नहीं हूँ

शाख पर
बैठे परिंदे
प्यार से जब बोलते हैं
गीत भी
अपने समय की
हर परत को खोलतें हैं

भाव का
खिलता कँवल हूँ
मौन का भिस्सा नहीं हूँ

शब्द उपमा
और रूपक
वेदना के स्वर बने हैं
ये अमिट
धनवान हैं जो
छंद बन झर झर झरे हैं

प्रीति का
मधुमास हूँ
खलियान का मिस्सा नहीं हूँ

अर्थ
बिम्बों में समेटे
राग रंजित मंत्र प्यारे
कंठ से
निकले हुए स्वर
कर्ण प्रिय
मधुरस नियारे

मील का
पत्थर बना हूँ
दरकता सीसा नहीं हूँ।

२३ मार्च २०१५

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