अनुभूति में
शशि पुरवार
की रचनाएँ -
नये गीतों में-
कमसिन साँसें
तिलिस्मी दुनिया
थका थका सा
दफ्तरों से पल
भीड़ का हिस्सा नहीं हूँ
याद की खुशबू
समय छिछोरा
गीतों में-
अब्बा बदले नहीं
कण-कण में बसी है माँ
मनमीत आया है
महक उठी अँगनाई
व्यापार काला
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याद की खुशबू
गाँव के बीते दिनों की
याद आती है मुझे
याद की खुशबु हवा में
गुदगुदाती है मुझे
धूल से लिपटी सड़क पर
पाँव नंगे दौड़ना
वृक्ष पर लटके फलों को
मार कंकर तोडना
जीत के हासिल पलों को
दोस्तों से बाँटना
और माँ का प्यार की उन
झिड़कियों से डाँटना
गंध साँसों में घुली है
माटी बुलाती है मुझे
नित सुहानी थी सुबह
हम खेलते थे बाग़ में
हाथ में तितली पकड़ना
खिलखिलाना राग में
मस्त मौला उम्र थी
मासूम फितरत से भरी
भोर शबनम सी खिली
नम दूब पर जादूगरी
फूल पत्ते और कलियाँ
फिर रिझाती हैं मुझे
गाँव के परिवेश बदले
आज साँसे तंग हैं
रौशनी के हर शहर
जहरी धुएँ के संग हैं
पत्थरों के आशियाँ हैं
शुष्क संबंधों भरे
द्वेष की चिंगारियाँ हैं
नेह खिलने से डरे
वक़्त की सरगोशियाँ
पल पल डराती हैं मुझे
२३ मार्च २०१५
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