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झूल रहे कंदील हवा में
क्या क्या रंग दिखाएँ
रोशनियाँ तीली ने बदलीं
चकरी हुई सयानी
सहमी सहमी जले फुलझड़ी
गुपचुप कहे कहानी
राकेट फुर्र हुये तेजी से
वापस घर न आएँ
आँगन में जगमगा रही है
ये बनावटी लड़ियाँ
यूँ तो जले दीप बाती
पर, टूट रही है कड़ियाँ
बिखर रहे माला के मोती
शायद ही जुड़ पाएँ
हुई विलीन कहाँ, ना जाने
वह खुशियों की दुनिया
तारे गिनती बैठी है
आँगन में छोटी मुनियाँ
शायद कोई तारा टूटे
खुशियाँ घर में आएँ
-शशि पुरवार
२८ अक्तूबर २०१३ |