पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१. १२. २०१८

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यों हमने सोपान चढ़े

 

 

कुछ अपनों को कुहनी मारी
कुछ रिश्तों पर पाँव पड़े
यों हमने सोपान चढ़े

जितनी बाहर बिजली चमकी
उतना भीतर घन गहराया
यश वैभव पर आँख गड़ी तो
समझ बूझ पर पर्दा छाया
मैल कुटिलता के ऊपर से
मुस्कानों के झूठ गढ़े
यों हमने सौपान चढ़े

स्वारथ के काले धागों से
षड्यंत्रों का जाला बुन कर
पाँव तले अपनों के पथ में
बिछा दिए काँटे चुन चुन कर
कुछ पैने नाखून बढाकर
कुछ कछुए से खोल मढ़े
यों हमने सोपान चढ़े

जब से नभ में दिखे सितारे
पाँव ज़मीं पर टिक ना पाए
नैतिकता की मिट्टी छूटी
तिकड़म ने डैने फैलाए
कुछ गिद्धों से ले पैनापन
कुछ गिरगिट से पाठ पढ़े
यों हमने सोपान चढ़े

- संध्या सिंह

इस माह

गीतों में-

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संध्या सिंह

अंजुमन में-

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राजेन्द्र वर्मा

छंदमुक्त में-

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रोली शंकर

माहिया में-

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निशा कोठारी

पुनर्पाठ में-

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बाबूराम शुक्ल

पिछले माह
१ नवंबर २०१८ को प्रकाशित दीपावली विशेषांक में

गीतों में-
आकुल, उमाकांत मालवीय,
ओम प्रकाश नौटियाल, कल्पना मनोरमा, कल्पना रामानी, कैलाश झा किंकर, गरिमा सक्सेना, गीतिका वेदिका, जय चक्रवर्ती, मधु प्रधान, मधु शुक्ला, मनोज जैन मधुर, रंजन कुमार झा, रंजना गुप्ता, रमेश गौतम, राहुल शिवाय, शिवानंद सहयोगी, श्रीधर आचार्य शील, सुरेन्द्रपाल वैद्य, स्वयं श्रीवास्तव, आशा सहाय
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दोहों में- जनकवि दीनानाथ सुमित्र, परमजीत कौर रीत, यायावर, राजेन्द्र वर्मा, सुबोध श्रीवास्तव
1
अंजुमन में- बसंत कुमार शर्मा, रमा प्रवीर वर्मा, वर्षा सिंह

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी